मराठी अस्मिता पर फिर साथ आए ठाकरे बंधु, स्टालिन ने दिया समर्थन: बोले- हिंदी थोपने नहीं देंगे
महाराष्ट्र में भाषा और अस्मिता के मुद्दे ने एक नया मोड़ ले लिया है। लंबे समय बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक मंच पर नजर आए और मराठी भाषा के समर्थन में साझा रैली कर केंद्र की तीन-भाषा नीति के खिलाफ आवाज बुलंद की। इस मुद्दे पर उन्हें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का भी समर्थन मिला है, जिन्होंने कहा कि वे हिंदी थोपने की किसी भी कोशिश का विरोध करते रहेंगे।
20 साल बाद दिखी ठाकरे बंधुओं की एकता
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उद्धव ठाकरे (शिवसेना-उद्धव गुट) और राज ठाकरे (मनसे) ने 2005 के बाद पहली बार एक मंच साझा किया।
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मुंबई के वरली स्थित नेशनल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स डोम में आयोजित ‘मराठी की आवाज’ रैली में दोनों नेता भावुक होकर गले मिले।
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दोनों नेताओं ने साफ किया कि भाषा और अस्मिता के मुद्दे पर अब उनके बीच की दूरियां खत्म हो गई हैं।
तीन-भाषा फॉर्मूले के विरोध में साथ आए नेता
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केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में प्रस्तावित तीन-भाषा फॉर्मूला को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।
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स्टालिन पहले से ही इस नीति का विरोध कर रहे हैं और अब ठाकरे बंधु भी खुलकर मैदान में आ गए हैं।
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उद्धव और राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी की अनिवार्यता हटाने के फैसले को जीत बताया और इसे मराठी गौरव की वापसी कहा।
स्टालिन ने कहा- हिंदी थोपी तो करेंगे विरोध
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डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने ठाकरे भाइयों की एकता का स्वागत करते हुए कहा कि,
“हिंदी को जबरन थोपने की कोशिश को किसी भी राज्य में स्वीकार नहीं किया जाएगा।”
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स्टालिन पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं कि तमिलनाडु दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) को जारी रखेगा और तीसरी भाषा के नाम पर हिंदी थोपने का विरोध करता रहेगा।
रैली बनी मराठी स्वाभिमान की आवाज
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इस रैली में किसी पार्टी का झंडा या निशान नहीं लगाया गया था।
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राज ठाकरे ने पहले ही स्पष्ट किया था कि यह आयोजन किसी राजनीतिक पार्टी की नहीं, बल्कि मराठी अस्मिता की आवाज है।
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उन्होंने भाषण में कहा कि,
“मराठी को दबाया नहीं जा सकता, ये भाषा हमारी पहचान है।”
उद्धव ने दिया राजनीतिक संकेत
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जहां राज ठाकरे ने भाषण को पूरी तरह मराठी अस्मिता तक सीमित रखा, वहीं उद्धव ठाकरे ने मंच से राजनीतिक एकजुटता का भी संदेश दे डाला।
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उन्होंने कहा,
“हम अब साथ आए हैं, और साथ रहकर ही महाराष्ट्र और मुंबई की सत्ता फिर से अपने हाथ में लाएंगे।”